केतु का कुंडली के सप्तम भाव में फल? केतु अगर सातवें भाव में हो…

 

भारतीय वैदिक ज्योतिष में सातवां भाव (सप्तम भाव) विवाह, जीवनसाथी, साझेदारी, प्रेम, और जनसंपर्क का प्रतिनिधित्व करता है। इस भाव से जातक के वैवाहिक जीवन की गुणवत्ता, वैवाहिक सुख, जीवनसाथी का स्वभाव, व्यापारिक साझेदारियाँ, और सार्वजनिक संबंधों का आकलन किया जाता है। जब इस भाव में केतु ग्रह स्थित हो, तो उसके परिणाम रहस्यमय, गूढ़, और गहराई से प्रभाव डालने वाले हो सकते हैं। आज ओमांश एस्ट्रोलॉजी अपने इस लेख में केतु का कुंडली के सातवें भाव में स्थित होने पर क्या प्रभाव देखने को मिलते है, इसके बारे में विस्तृत जानकारी लेकर प्रस्तुत है!

 

केतु एक छाया ग्रह है, जिसे रहस्य, त्याग, मोक्ष, आध्यात्म, भ्रम, और पिछले जन्म के कर्मों का प्रतीक माना गया है। सातवें भाव में इसका गोचर या स्थिति विभिन्न प्रकार के शुभ और अशुभ प्रभाव प्रदान कर सकती है, जो जातक की कुंडली की संपूर्ण स्थिति पर निर्भर करता है।

 

ज्योतिष शास्त्र में सप्तम भाव को “काम त्रिकोण” का एक हिस्सा माना गया है। यह भाव मुख्यतः निम्नलिखित विषयों का प्रतिनिधित्व करता है:

 

* विवाह और जीवनसाथी!

* वैवाहिक संबंधों की स्थिरता और संतुलन!

* व्यापारिक साझेदारी!

* यौन संबंध और आकर्षण!

* सार्वजनिक व्यवहार और प्रतिमान!

 

अब यदि केतु जैसे ग्रह की उपस्थिति इस भाव में होती है, तो इन विषयों में असामान्यता या रहस्य उत्पन्न हो सकते हैं।

 

**केतु का स्वभाव और विशेषताएँ;

केतु को “छाया ग्रह” माना गया है, जो भौतिक रूप से अस्तित्व में नहीं है, परंतु उसका प्रभाव अत्यंत गहरा और सूक्ष्म होता है।

* भौतिक मोह से विरक्ति का प्रतीक है!

* रहस्यमय ज्ञान, गूढ़ विद्या, और आध्यात्म की ओर ले जाता है!

* भ्रम, अवास्तविकता, और मानसिक असंतुलन का कारण बन सकता है!

* पूर्व जन्म के कर्मों का सूचक है!

इसलिए जब यह सातवें भाव में होता है, तो व्यक्ति के संबंध, विशेष रूप से वैवाहिक जीवन, में गहराई, रहस्य और कभी-कभी भ्रम की स्थिति उत्पन्न कर सकता है।

**सातवें भाव में केतु का फल**

सप्तम भाव के केतु का वैवाहिक जीवन पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता हैं! केतु जीवनसाथी से दूरी का प्रतीक हो सकता है। व्यक्ति भावनात्मक या भौतिक रूप से अपने जीवनसाथी से कटा-कटा महसूस कर सकता है।जीवनसाथी रहस्यमयी स्वभाव का हो सकता है! जीवनसाथी की प्रवृत्ति गूढ़, अंतर्मुखी, और कभी-कभी अज्ञात भय से ग्रस्त हो सकती है।

विवाह में विलंब या विघटन होने जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है! यदि केतु अशुभ स्थिति में हो, या राहु-केतु की दशा चल रही हो, तो विवाह में देरी, विवाद या तलाक की संभावना हो सकती है। एकाधिक विवाह का योग बन जाता हैं! यदि केतु के साथ सप्तमेश भी प्रभावित हो या शुक्र नीच का हो, तो वैवाहिक जीवन में स्थायित्व की कमी आ सकती है।

जीवनसाथी का स्वभाव और व्यवहार आत्ममंथन करने वाला, रहस्यप्रिय, और कभी-कभी अव्यक्त विचारों वाला हो सकता है! कभी-कभी जीवनसाथी मानसिक रोगों से पीड़ित हो सकता है (विशेषकर यदि चंद्रमा या सप्तमेश पीड़ित हो)।एक ऐसी परिस्थिति उत्पन्न होती है, जिसमें व्यक्ति को यह समझना कठिन हो जाता है कि जीवनसाथी की इच्छाएं और अपेक्षाएं क्या हैं

यौन जीवन पर जब केतु का प्रभाव पड़ता है तो केतु यौन ऊर्जा का दमन करता है। सप्तम भाव में इसकी उपस्थिति यौन असंतोष, विरक्ति या विकृति की ओर संकेत करती है। व्यक्ति को यौन आकर्षण कम महसूस हो सकता है, या संबंधों में गहराई और संतुलन का अभाव हो सकता है।

व्यापारिक साझेदारी पर भी इसका प्रभाव देखने को मिलता है! साझेदार के साथ धोखा, भ्रम या रहस्य हो सकते हैं! साझेदारी में पारदर्शिता की कमी होती है, जिससे विश्वास की कमी जन्म लेती है! व्यक्ति ऐसे व्यापार में सफलता पा सकता है जो रहस्य, गूढ़ विद्या, आयुर्वेद, तंत्र, या अनुसंधान से जुड़ा हो।

**अनुकूल और प्रतिकूल स्थितियाँ**

**जब केतु शुभ हो; (अनुकूल अवस्था में): केतु यदि सप्तम भाव में उच्च का हो (जैसे वृश्चिक राशि में), या बृहस्पति या शुक्र के साथ शुभ योग बना रहा हो, तो व्यक्ति आध्यात्मिक जीवनसाथी प्राप्त कर सकता है! जीवनसाथी ज्ञानवान, शांत, और गहराई से सोचने वाला होता है! ऐसे जातक व्यापारिक साझेदारी में विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण रखते हैं, जिससे अप्रत्याशित लाभ मिल सकता है।

 

**जब केतु अशुभ हो ; (पीड़ित अवस्था में) चंद्रमा, शुक्र या सप्तमेश पर केतु की दृष्टि हो या उसकी युति हो, तो वैवाहिक जीवन में भ्रम, धोखा या विश्वासघात की स्थिति बन सकती है! जातक को अवसाद, अकेलापन, और सामाजिक दूरी की भावना हो सकती है! अवैध संबंधों, या विवाहेतर संबंधों का भी योग बनता है, विशेष रूप से यदि राहु पंचम या नवम में हो!

**केतु के उपाय ;

** “ॐ कें केतवे नमः” मंत्र का 108 बार प्रतिदिन जाप करें।

**उड़द की दाल और नारियल का दान करे!

**शनिवार को गरीबों को दें।काले कुत्ते को रोटी खिलाना केतु की शांति हेतु विशेष प्रभावी होता है!

**धातु का केतु यंत्र तांबे या चांदी में अभिमंत्रित करके यंत्र स्थापित करना शुभ होता है।

 

**रुद्राभिषेक शिवजी की आराधना और जलाभिषेक से केतु शांत होता है।

 

**शिवलिंग पर काले सफेद तिल जल में मिला अभिषेक करे!

 

** विशेषकर गणेश जी को लड्डू का भोग लगाएं और सिंदूर लगाने से भी केतु के अनिष्टकारी प्रभाव दूर होते है!

 

**गुरु का सम्मान करें, गुरुओं, बुजुर्गों और आध्यात्मिक व्यक्तियों का आदर केतु को अनुकूल बनाता है।

 

सप्तम भाव में केतु की उपस्थिति कुंडली के अनुसार सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव दे सकती है। यदि यह शुभ ग्रहों के साथ युति में हो, या शुभ दृष्टि से युक्त हो, तो यह आध्यात्मिक, त्यागमयी और उच्च स्तर के संबंध प्रदान कर सकता है। लेकिन यदि यह पीड़ित हो, तो व्यक्ति को वैवाहिक जीवन में भ्रम, अविश्वास, या असंतोष की स्थिति का सामना करना पड़ सकता है।

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